जिनगीभर पुरस्कारमे हर साल दश हजार रुपैया थपइत जाएम :- लालबाबु साह

लालबाबु साह लालबाबु साहके वास्तविक नाओ योगेन्द्र प्रसाद साह हए । बज्जिका भाषाके पहिल राष्ट्रिय कविता प्रतियोगिता कराबेके श्रेय हिनके हए । बज्जिका भाषा विकास परिषद नेपालके संस्थापक उपाध्यक्ष साहक े बज्जिका भाषासे बहुत निकटसे लगाव हए । बज्जिका भाषा आ साहित्यके उपर होएबाला हर छलफल आ कार्यक्रमके सक्रिय सहभागी साह अपना तरपसे कार्यक्रममे आर्थिक सहयोग करते आएल छथिन् । बज्जिका भाषा आ साहित्यके चिन्हाबेके हुनकर चाहना बहुत पहिलेसे ही रहलासे हुनका मनमे अपना तरपसे कुछ करेके लालसा रहे । अपना घरमे सरसलाह कएलाके बाद लोकसाहित्यके संरक्षणके लेल हुन पुरस्कारके स्थापना कएलन् । लालबाबु साहके वास्तविक नाओ योगेन्द्र प्रसाद साह हए । बज्जिका भाषाके पहिल राष्ट्रिय कविता प्रतियोगिता कराबेके श्रेय हिनके हए । बज्जिका भाषा विकास परिषद नेपालके संस्थापक उपाध्यक्ष साहके बज्जिका भाषासे बहुत निकटसे लगाव हए । बज्जिका भाषा आ साहित्यके उपर होएबाला हर छलफल आ कार्यक्रमके सक्रिय सहभागी साह अपना तरपसे कार्यक्रममे आर्थिक सहयोग करते आएल छथिन् । बज्जिका भाषा आ साहित्यके चिन्हाबेके हुनकर चाहना बहुत पहिलेसे ही रहलासे हुनका मनमे अपना तरपसे कुछ करेके लालसा रहे । अपना घरमे सरसलाह कएलाके बाद लोकसाहित्यके संरक्षणके लेल हुन पुरस्कारके स्थापना कएलन् । बज्जिकार्पण साहित्यिक त्रैमासिकमे प्रकाशित लोकसाहित्यके विधामेसे एकजने संकलकके सम्मानित करेके लेल सम्मानपत्रसहित एक हजार एक सय नगद देबेके हुनकर घोषणा हए । पुरस्कारके ही विषयमे केन्द्रित होके रौतहटके रघुनाथपुर ८ निवासी साहसे कएलगेल बाचचितके मुख्य अंश ः

अपनेके मनमे लोकसाहित्यके लेल पुरस्कारके स्थापना करेके चाहना केना आएल ?

साहित्यकारलोगके हौसला आउरो बढाबेके लेल हमनीके भाषामे पुरस्कारके स्थापना करनाइ जरुरी हए । साहित्यकारलोगके नाम इतिहासमे अमर होअलई, ऊलोगके मेहनतके कदर करेके लेल पुरस्कारके स्थापना करनाइ बहुत महत्त्वपूर्ण हए । हमपने साहित्यकार नहोएलासे बज्जिका भाषाके साहित्यके इतिहासमे कुछो करेके लालसासे पुरस्कारके स्थापना कइली । होसकले, पुरस्कारके स्थापनासे बज्जिका भाषाके इतिहासमे हमर नाओ भी आबे ।

पुरस्कार स्थापनाके उद्देश्य कथि हई ?

सबसे पहिले भाषाके विकास होनाइ ही हमर उद्देश्य हए । भाषाके प्रचारप्रसार करेके लेल पुरस्कारके स्थापना कइली । हर आदमीके मनमे रहलेकि हम कुछो करी, हमरो मनमे ई बात रहे । ओहीसे हम अपना मातृभाषाके साहित्यसेवा करेबालालोगके थप प्रोत्साहनके लेल कौनो पुरस्कार स्थापना करेके लेल कुछलोग सुझाव देलन् । कविलोगके लेल एगो पुरस्कारके स्थापना पहिलेही होगेल हए । अपना मातृभाषामे लोकसाहित्यके भन्डार हई । लोकसाहित्यके संरक्षण आ विकास तथा भाषाके प्रचारप्रसार करेके उद्देश्यसे हम पुरस्कारके स्थापना कएले छी ।

लोकसाहित्यके क्षेत्रके लेल ही काहे पुरस्कारके स्थापना कइली ?

हमनीके भाषाके लोकजीवनमे साहित्यके बहुत क्षेत्र हई । लोकसाहित्यके क्षेत्रमे काम करेबाला साहित्यकार लोगके हौसला मिली । लोकसाहित्य भी भाषाके विकासके एगो माध्यम हई । भाषाके विकासमे सहयोग करेके लेल आ आउरो लेखकसबके ध्यान जाएके लेल पुरस्कारके स्थापना भेल हए । हमर चाहना हए कि जेतना जल्दी होखो भाषाके विकास आ प्रचारप्रसार होएके चाहिँ ।

मगर लोकसाहित्यमे ही काहे ?

लोकसाहित्य हमनीके पूर्वजसे ही चलते आरहल हई । हमनीके समाजमे पूर्वजसे चलते आरहल चिजसब बहुत हई । भाषाके क्षेत्रमे छ� पबनीके गीत, कहाबत, कथा, गीतसब चलनमे रहल हई । अइसन सम्पत्तिके संरक्षण होखो । अइसन चिजके संरक्षण नहोएसकलासे बहुत त हेराभुला गेलई, जेहु बाँचल हई ओकरो संरक्षण करनाइ जरुरी हई । भाषाके सुरक्षाके लेल लोकसाहित्यमे छुपल भाषिक सम्पत्तिके अगाडु बढाबेके लेल लोकसाहित्यके क्षेत्रमे पुरस्कारके स्थापना करनाइ जरुरी बुझएलासे लोकसाहित्यमे ही पुरस्कारके स्थापना कएलगेल ।

पुरस्कारके नाओ एसएस लोकसाहित्य पुरस्कार काहे रखली ?

एसएसमे हमरा बाबुजी आ माईके नाओ छुपल हए । घरमे सलाह भेलकि बाबुजी आ माईके नाओसे ही पुरस्कारके स्थापना कएलजाए । बाबुजीके नाओ सुखल साह आ माईके नाओ सुनैना देवी साह होएलासे दुनुजनेके नाओके अंग्रजीमे लिखलापर पहिल अक्षरके एसएस पकडके पुरस्कारे नाओ एसएस लोकसाहित्य पुरस्कार नाओ राखली । बहुत सोंचबिचारके ही एसएस लोकसाहित्य पुरस्कार नाओ रखाएल हए । पुरस्कारके नाओ त रखहीके परतिअई, अपना बाबुमाईके सम्मानके खातिर ही दुनुजनेके नाओपर पुरस्कारके नाओ रखाएल हए ।

ई पुरस्कार केकरा देल जतई ?

बज्जिकाभाषी जहाँ होखो । बज्जिका त नेपालके मूलरुपसे तीनगो जिला आ भारतके बिहारके भी तीनगो जिलामे बोलल जालई । बज्जिका भाषाके लोकसाहित्यके सेवा करेबालाके ई पुरस्कार देलजतई । बज्जिकार्पण साहित्यिक पत्रिकामे एक बरिसमे प्रकाशित लोकसाहित्यके अनेक विधामेसे एकजने संकलकके एसएस लोकसाहित्य पुरस्कार आ सम्मानपत्रसे सम्मानित कएलजाई । नेपाल आ भारत दुगो देश हई, देशके सिमा बाँटल हई मगर भाषा नबाँटल हई । कौनो भेदभाव नकऽके हर साल ई पुरस्कार देलजाई ।

दोसर मातृभाषी भी त बज्जिकाके लिखलई ?

कहेके मतलब बज्जिका भाषाके लोकसाहित्यके संरक्षण करेबाला कौनो भी मातृभाषीके देलजाई । बज्जिका भाषाके लोकसाहित्यके संरक्षणमे जे योगदान दी ओकरा मिली । एइमे दोसरा मातृभाषी होगेल कहके भेदभाव नहोई, योगदानके मूल्यांकन कऽके पुरस्कार देहलजाई । नेपाली मातृभाषी, मैथिली मातृभाषी, भोजपुरी मातृभाषी भी बज्जिकामे लिखरहल हई । नेपाली आ मैथिली मातृभाषी त बज्जिकाके पुरस्कारसे सम्मानित भी होगेल छथिन् । बज्जिका लोकसाहित्यके संरक्षण आ विकासमे भी नेपाली मातृभाषीके सहयोग देखलगेल हए । ऊ सभी लोग पुरस्कारके भागी होइहन जे अपना मातृभाषाके लोकसाहित्यके लेल कुछ कऽके देखबइछत, चाहे कौनो मातृभाषी रहस् ।

पुरस्कारके रकम कम नहई ?

पहिलबेर स्थापना भेल हई । जदि कौनोके एगो संकलनके एक हजार रुपैया मिलइत हए त ओकरा कम नमानेके चाहिँ । वास्तवमे ई कौनो पारिश्रमिक नहोके पुरस्कार हई । पुरस्कारके मतलब सम्मान होखलई । सम्मान एक रोपैयाके होखो चाहे लाख रोपैयाके । लेकिन तइओ तत्काल बैंकमे खाता खोलके पाँच सात हजार रोपैया राखदेबई । आ पुरस्कारके अक्षयकोषमे रकम निरन्तर बढएते जाएम, हर साल दश हजार रखते जाएम । हम जौले जिन्दा रहबई तौले हर साल दश हजार रोपैया कोषमे जमा करते जबई । जब अक्षयकोषमे रकम बढइत जतई तब ओहीमोताबिक पुरस्कारके रकममे भी धीरेधीरे वृद्धि होइत जतई ।

पुरस्कार स्थापनाके घोषणा कएलाके बाद मनमे केना बुझाइता ?

भाषाला कुछ करेके चाहना त पहिलहिएसे रहे । दिलसे लगानी करेके इच्छा रहे । बज्जिका भाषाके साहित्यकार लोगके हौसला आउरो बढाबेके लेल पुरस्कारके स्थापना कइली । हमरा विश्वास हए कि एसे लोगके हौसला बढतई । जेलेखा सबके अपना बेटाबेटीपर माया रहलई ओहिना माया हमरा एहुपर हए । वास्तवमे पुरस्कारके स्थापना कएलाबाद हमरा मनमे एगो अलगे किसिमके शान्ति आ सन्तोष मिलल हए । दिलमे खुसी बुझाइअ । घरपरिवारमे भी सभीलोग खुसी हए ।

अन्तमे, आउरो कुछो कहे चाहम ?

हमरा इहे कहेके बा कि अपना मातृभाषाके विकासके लेल सभी आदमीके कुछोनकुछो करहीके चाहिँ । जे साहित्य लिखसकइअ हुनका साहित्य लिखेके आ जे नलिखसकइअ हुनका लिखेबालालोगके हौसला बढाबेके चाहिँ । बज्जिका एगो लोकभाषा होएलासे एक्कर संरक्षण आ विकास दुनु करेमे हर बुद्धिजीवी आदमीके योगदान देबेके चाहिँ । लोकसाहित्यके संकलनमे हर आदमी योगदान देके मातृभाषापर गर्व करु । हरेक आदमी अपना मातृभाषाके लेल कुछ जरुर करु ।

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